Tuesday, March 5, 2013
अनिर्णय
जीवन में जब आती है
अनिर्णय की स्थिति
इंसान हो जाता है
स्थिर, पूर्ण स्थिर
जड़वत, पाषण बनी आहिल्या की तरह।
या कहिये स्थितिप्रज्ञ,
बोध को प्राप्त हुए सिद्धार्थ की तरह ।
मन होता है शून्यावस्था में
चेतन होते हुए भी अवचेतन ।
शरीर होता है
समस्त विकारों के बावजूद निर्विकार।
त्याग और मोह,
हार और जीत,
जीवन और मृत्यु के बीच फसे व्यक्ति की
इसी मनोदशा को तो नहीं कहते - कहीं निर्वाण ??
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