Wednesday, February 13, 2013

आखिर क्यों???

क्यों ???
हजार ख़बरों के बाद भी
बिना खबर का लगता है दिन
जबकि सुबह के अखबार
भरे थे कुंभ के लाल छीटों से
फिर भी टी वी की धडाधड रिपीट हो रही ख़बरों में
क्यों नहीं जग रही थी कोई दिलचस्पी
आखिर क्यों???
शायद वर्तमान के कपाट पर उग आये
इस क्यों के उत्तर में
निरुत्तर है पूरा का पूरा ज़माना
तभी तो
आत्मप्रवंचना में पागल है हर इंसान ।
असंवेदना के धरातल पर खड़ा होकर
साबित कर रहा है 
अपने को अधिक श्रेष्ठ दूसरे से
(हर विधा का तरीका अलग है
 मगर मकसद एक)
साहित्य-मीडिया-राजनीति
सभी के किरदार
एक ही भावना से भावित
एक ही नेपथ्य में रंग-रूप बदलकर
असंवेदनशील भड़ुआ बने लग रहे हैं।