क्यों ???
तभी तो
आत्मप्रवंचना में पागल है हर इंसान ।
असंवेदना के धरातल पर खड़ा होकर
साबित कर रहा है
अपने को अधिक श्रेष्ठ दूसरे से
(हर विधा का तरीका अलग है
मगर मकसद एक)
मगर मकसद एक)
साहित्य-मीडिया-राजनीति
सभी के किरदार
एक ही भावना से भावित
एक ही भावना से भावित
एक ही नेपथ्य में रंग-रूप बदलकर
असंवेदनशील भड़ुआ बने लग रहे हैं।