Wednesday, October 1, 2014

कवि-धर्म

कवि कर्म करते हो / तो कविता का धर्म समझो
मत चुराओ किसी की कविता की / मार्मिक पंक्ति
कोई नहीं होता महान / कविता-संग्रहों के भण्डार से
कविता होने लायक /  रच देते हो एक पंक्ति भी
तो करते हो पुण्य...
गोधूली की बेला में / तुलसाघर में रखते हुये दीपक
मेरी माँ की तरह...