Monday, May 26, 2014

जंगल से जंगल की यात्रा…

जैसे मेरे गाँव के आदिवासी
बांधते थे, अधगीली-सूखी लकड़ियों के गठ्ठर
बिना किसी दया और सवेंदना के
पेट भरने वास्ते…
वैसे ही दिल्ली के
एम्स, ट्रामा, सफ़दरजंग के इमरजेंसी वार्डों के बाहर
भरे-पूरे असंवेदना के माहौल में
बंधते देखता हूँ गठ्ठर
जवान-लावारिश लहासों के
जो आये थे पेट भरने वास्ते
जंगल से महानगर पहुंचकर समझ गया हूँ
कि रहना होगा मुझे हर पल सजग-सावधान
क्योंकि अब मैं भयानक जंगल में घुस आया हूँ ...