वह, मेरी
माँ, बहन, पत्नी
इनमें से कुछ भी नहीं थी |
फिर भी
इन संबंधों के परे
बहुत कुछ थी मेरे लिये |
जब भयानक समय के थपेड़ों से
इस ख़तरनाक शहर में टूट सा जाता
संघर्ष समर में,
तब वह
हौसला जगाती
ढाढस बंधाती,
बिल्कुल मेरी बहन की तरह
पर रक्षाबंधन में बांधा जाने वाला
रक्षा सूत्र कभी न बांधती |
जब स्वार्थी समय के इस दौर में
स्वारथ के तमाम संबंधों के बीच
अचानक से बिल्कुल अकेला पाता
अपने आप को
तब, अकस्मात से
बन जाती वह मेरी माँ
और सहलाते हुये सर के बाल
गुनगुनाती
'हिम्मत न हारिये बिसारिये न राम को'|
जब कभी जवान जोड़ों को देख
ईर्ष्या हो आती मेरे मन में
तब मुझे देख दुखी, जान मेरी मनोवृत्ति को
झट से थाम लेती मेरा हाथ
और चहकते हुये कहती
चलो आज देखते हैं मूबी
पापकोर्न खाते हुये
बहल जाएगा मन
लड़ाते हुये गप्पें मिटाते हुये मेरा नैराश्य
बन जाती थी मेरी सहचरी
बिल्कुल वैसे ही
जैसे बहन न होते हुये बहन और माँ न होते हुये माँ |
वह मेरी 'महिला-मित्र' थी
जिसके रहने पर
जितने मुंह उतनी बातें
और अब न रहने पर
एकाकी मैं और मेरी तन्हाई ...|
(अपने मित्र दीपक गौतम और उसकी तन्हाई को समर्पित...)
माँ, बहन, पत्नी
इनमें से कुछ भी नहीं थी |
फिर भी
इन संबंधों के परे
बहुत कुछ थी मेरे लिये |
जब भयानक समय के थपेड़ों से
इस ख़तरनाक शहर में टूट सा जाता
संघर्ष समर में,
तब वह
हौसला जगाती
ढाढस बंधाती,
बिल्कुल मेरी बहन की तरह
पर रक्षाबंधन में बांधा जाने वाला
रक्षा सूत्र कभी न बांधती |
जब स्वार्थी समय के इस दौर में
स्वारथ के तमाम संबंधों के बीच
अचानक से बिल्कुल अकेला पाता
अपने आप को
तब, अकस्मात से
बन जाती वह मेरी माँ
और सहलाते हुये सर के बाल
गुनगुनाती
'हिम्मत न हारिये बिसारिये न राम को'|
जब कभी जवान जोड़ों को देख
ईर्ष्या हो आती मेरे मन में
तब मुझे देख दुखी, जान मेरी मनोवृत्ति को
झट से थाम लेती मेरा हाथ
और चहकते हुये कहती
चलो आज देखते हैं मूबी
पापकोर्न खाते हुये
बहल जाएगा मन
लड़ाते हुये गप्पें मिटाते हुये मेरा नैराश्य
बन जाती थी मेरी सहचरी
बिल्कुल वैसे ही
जैसे बहन न होते हुये बहन और माँ न होते हुये माँ |
वह मेरी 'महिला-मित्र' थी
जिसके रहने पर
जितने मुंह उतनी बातें
और अब न रहने पर
एकाकी मैं और मेरी तन्हाई ...|
(अपने मित्र दीपक गौतम और उसकी तन्हाई को समर्पित...)
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